आंतरिक निरीक्षण क्या है । internal check । नकद बिक्री का आन्तरिक निरीक्षण

आंतरिक निरीक्षण की परिभाषाएं

  • आंतरिक निरीक्षण कर्मचारी के कर्तव्यों की ऐसी अवस्था है जिसमें एक ही व्यक्ति किसी लेनदेन से संबंधित सभी कार्यों को नया लिख सके जिससे दो या अधिक व्यक्ति के बिना मिले हुए कपट ना हो सके वह साथ ही त्रुटि की संभावना न्यूनतम हो जाए
  • आंतरिक अंकेक्षण  व्यवहार में चालू आंतरिक अंकेक्षण है जो कर्मचारी द्वारा होता  ही किया जाता है ताकि प्रत्येक व्यक्ति का कार्य स्वतंत्र रूप से दूसरों के द्वारा जांचा जा सके।
  • आंतरिक निरीक्षण एक ऐसी अवस्था है जिसमें कर्मचारी को कुछ निश्चित सूचनाएं कार्य के संबंध में दी जाती है। जिससे कि उनके कार्य का सत्यापन और नियंत्रण होता रहे‌। और शुद्ध लिखो को रखने का अंतिम उद्देश्य पूरा हो सके।

नकद बिक्री का आन्तरिक निरीक्षण
(INTERNAL AUDITING OF CASH SALES)


बड़ी-बड़ी संस्थाओं में जहाँ दैनिक नकद बिक्री के लेन देन या व्यवहार (Transactions) अधिक मात्रा में होते हैं, वहां गड़बड़ी तथा छल-कपट के अवसर बहुत होते हैं। एक अंकेक्षक चाहे जितनी भी जांच करे, परन्तु इस गड़बड़ी को तब तक नहीं रोक सकता जब तक नकद बिक्री के सम्बन्ध में व्यवस्थित आन्तरिक निरीक्षण प्रणाली न हो। नकद बिक्री तीन प्रकार से की जा सकती है :

(1) दुकान पर बिक्री,

(2) एजेण्टों द्वारा बिक्री, और

(3) डाक द्वारा बिक्री

(4) नकद प्राप्ति।

 

1. दुकान पर बिक्री (Sales at the Counter)— 

 साधारणतया बड़ी बड़ी दुकानों में Cash Register आदि का प्रयोग भी लाभदायक सिद्ध हुआ है। बिक्री के नियन्त्रण के लिए आवश्यक कार्य-विधि निम्न प्रकार हैं।

  • विक्रेता (Salesman) का कार्य बिक्री करना होता है। उसकी पहचान के लिए विशेष अंक या अक्षर निर्धारित किया जाता है।
  •  प्रत्येक विक्रेता को एक रसीद बही दी जाती है जिस पर उसका परिचय अंक भी छाप दिया जाता है और ये बहियां विभिन्न विभागों के लिए भिन्न-भिन्न रंगों में बनायी जाती हैं।
  • विक्रेता ग्राहक को सामान बेचता है और रसीद (Cash memo) लिख देता है, जिसकी तीन प्रतिलिपियां तैयार की जाती हैं।
  •  रसीद लिखने के पश्चात् विक्रेता उसे एक अन्य कर्मचारी को जांच के लिए दे देता है जो जांच करने के पश्चात अपने हस्ताक्षर कर देता है
  •  अब रसीद की इन प्रतिलिपियों में से दो ग्राहक को दी जाती हैं और एक अपने पास रहती है।ग्राहक से यह कह दिया जाता है कि वह रोकड़िये को जिसका बैठने का स्थान द्वार के निकट होता है, रसीद की राशि का भुगतान कर दे।
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2. एजेण्टों द्वारा बिक्री (Sales by Travelling Agents)– किसी-किसी संस्था में बिक्री करने के लिए या पुराना बकाया ऋण वसूल करने के लिए एजेण्ट नियुक्त किये जाते हैं। इन एजेण्टों के पास संस्था के परिचय-पत्र (Identification letters) तथा नियमावली भी अवश्य होनी चाहिए। ये पुराने ग्राहकों से बकाया धन वसूल करते हैं और नये ग्राहकों से पेशगी प्राप्त करते हैं। एजेण्टों पर नियन्त्रण रखने के लिए नीचे लिख विधि अपनायी जाती है:
  • रोकड़ प्राप्त करते ही भुगतान करने वालों को कच्ची रसीद दे देनी चाहिए। साथ ही यह भी स्पष्ट बता देना चाहिए कि पक्की रसीद उन्हें संस्था से सीधे प्राप्त होगी।
  • यह भी बताने की आवश्यकता है कि यदि पक्की अधिकृत रसीद संस्था से प्राप्त न हो तो इसके लिए संस्था से पत्र व्यवहार करना चाहिए।
  • इन एजेण्टों को सम्पूर्ण प्राप्त रकम प्रधान कार्यालय भेजने का आदेश होना चाहिए। साथ ही यह भी स्पष्ट निर्देश होना चाहिए कि इस राशि में से वे व्यय के लिए अपने पास रकम न रखें। कमीशन आदि के लिए सीधे प्रधान कार्यालय से भुगतान प्राप्त कर लेना चाहिए।
  • पुराने देनदारों तथा ग्राहकों के पास कार्यालय से समय-समय पर विवरण-पत्र भेजने की व्यवस्था होनी चाहिए, ताकि उन्हें अपने अपने खातों के विषय में स्मरण-पत्र मिलते रहें।
  •  एजेण्टों व विक्रेताओं को भी समय-समय पर प्रधान कार्यालय से पत्र-व्यवहार करते रहना चाहिए

3. डाक द्वारा बिक्री (Postal Sales)—

  •  अलग से डाक की बिक्री (V.P.P. or Value Payable Post) का लेखा रखना चाहिए और इस कार्य के लिए अलग से रजिस्टर बनाना चाहिए जिसमें डाक से प्राप्त रकम का लेखा होना चाहिए।
  •  वी.पी.पी. रजिस्टर में वापस आये माल का लेखा रखना चाहिए।
  • दैनिक रोकड़ जो प्राप्त होती है, रोकड़ पुस्तक में चढ़ानी चाहिए और वी.पी.पी. रजिस्टर में विभिन्न ग्राहकों से प्राप्त रकम का पूरा विवरण देना चाहिए।
  • उत्तरदायी कर्मचारियों को सतर्कता से इस रजिस्टर की जाँच करनी चाहिए और जिस माल का भुगतान न हुआ हो, उसे अच्छी प्रकार से देखना चाहिए।
  •  इस सम्बन्ध में रोकड़-पुस्तक तथा प्राप्त आदेशों (orders) की जाँच करनी चाहिए।
4. नकद प्राप्ति (Cash Receipts) 
  •  रोकड़ की प्राप्ति से सम्बन्धित कार्य करने के लिए अलग कर्मचारी होना चाहिए। जैसे ही रोकड़ प्राप्त हो, वैसे ही कच्ची रोकड़-बही में उसका लेखा कर लेना चाहिए। उनको अपने पास अधिक समय तक रोकड़ रखने, उसमें से कुछ व्यय करने या रोजनामचा या खाताबही में लेखा करने का अधिकार नहीं होना चाहिए।
  •  यदि डाक द्वारा रोकड़ चैक, हुण्डी, ड्राफ्ट, आदि प्राप्त किये जाते हों, तो इनके प्राप्त करने तथा लेखा करने का कार्य एक जिम्मेदार व्यक्ति को देना चाहिए। यह भी आवश्यक है कि वह साख-पत्रों को उसकी प्राप्ति के तुरन्त पश्चात् रेखांकित (not negotiable) कर दे और अपनी डायरी में लिखने के पश्चात् इन्हें खजांची के सुपुर्द करे।
  • एक दिन में जितनी रोकड़ की प्राप्ति हो उसे उसी दिन बैंक में जमा कर देना चाहिए। समय-समय पर बैंक समाधान विवरण बनाना आवश्यक है, जिससे रोकड़ का मिलान हो सके।
  • बैंक में जमा करते समय जमा-पत्र (Pay-in-Slip) का वह भाग जो बैंक के पास रह जाता है, रोकड़िया को भरना चाहिए और दूसरा भाग जो प्रतिपर्ण (counterfoil) कहलाता है और संस्था के पास रहता है, उस कर्मचारी द्वारा भरा जाना चाहिए जो प्राप्ति की रसीदें लिखता है।

आंतरिक निरीक्षण की विशेषता

  • कार्यों का विभाजन
  • कार्य की स्वतंत्र जांच
  • कार्य सत्ता कर्मचारियों में परिवर्तन
  •  छल कपट को दूर करना 
  • अधिकार एवं उत्तरदायित्व का निर्धारण
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 आंतरिक निरीक्षण के  उद्देश्य

  • छल कपट को दूर करना
  • अंतिम खातों का शीघ्र निर्माण
  • कार्य का विभाजन 
  • उत्तरदायित्व का निर्धारण
  • अशुद्धियों एवं कपट का शीघ्र पता लगाना

आंतरिक निरीक्षण के लाभ

  •  नैतिक प्रभाव
  •  कार्य कुशलता में वृद्धि
  •  दायित्व का निर्धारण 
  • अशुद्धियां कपट का जल्दी पता लग जाना

 आंतरिक निरीक्षण की हानियां


  •  अशुद्धि   का डर
  •  अधिक  खर्चे
  •  अधिक समय प्रणाली
  •  कर्मचारियों में तनाव बढ़ना


तो आज हमने आंतरिक निरीक्षण के बारे में जाना अगर आप का आंतरिक निरीक्षण से रिलेटेड क्वेश्चन है तो आप कमेंट बॉक्स में कमेंट करके पूछ सकते हैं हम उनका जवाब जल्दी ही देंगे
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